सात्विक आहार से तात्पर्य ऐसे आहार से है जो न केवल शरीर को पोषण और ऊर्जा देता है बल्कि मन को भी शांत और एकाग्रचित्त करता है। ऐसा आहार हमें अधिक सजग भी बनाता है। सात्विक आहार मूलरूप से शाकाहारी होता है। शाकाहारी भोजन में भी प्राथमिकता कच्चे खाने यानि कच्ची सब्जियां, फल, सलाद, कच्चे मेवे, दुग्ध उत्पाद, इत्यादि को दी जाती है। कच्चा खाना सुपाच्य होता है, जबकि पका हुआ खाना पचने में समय और ऊर्जा दोनों ही अधिक लेता है। इसीलिए कच्चे भोजन की तुलना में, पके भोजन को खाने के बाद हमें सुस्ती और थकन सी महसूस होती है।
सात्विक आहार से तात्पर्य ऐसे आहार से है जो न केवल शरीर को पोषण और ऊर्जा देता है बल्कि मन को भी शांत और एकाग्रचित्त करता है। ऐसा आहार हमें अधिक सजग भी बनाता है। सात्विक आहार मूलरूप से शाकाहारी होता है। शाकाहारी भोजन में भी प्राथमिकता कच्चे खाने यानि कच्ची सब्जियां, फल, सलाद, कच्चे मेवे, दुग्ध उत्पाद, इत्यादि को दी जाती है। कच्चा खाना सुपाच्य होता है, जबकि पका हुआ खाना पचने में समय और ऊर्जा दोनों ही अधिक लेता है। इसीलिए कच्चे भोजन की तुलना में, पके भोजन को खाने के बाद हमें सुस्ती और थकन सी महसूस होती है।
1. सात्विक समय : खाना सही समय पर खाएं। सद्गुरु जग्गी वासुदेव के अनुसार, हमें दिन में दो बार या अधिकतम तीन बार भोजन करना चाहिए। साथ ही, दो भोजनों के बीच में बार-बार कुछ भी नहीं खाते रहना चाहिए। खाने का सही समय सुबह 11:00 बजे के आसपास और शाम को 7:00-7:30 है। लेकिन यदि व्यवसायिक कारणों से आप सुबह 11:00 बजे खाना नहीं खा पाते, तो हल्का नाश्ता ले सकते हैं, और फिर दोपहर का भोजन 1:00 बजे के आसपास। उसी क्रम में रात्रि भोजन 8:00-8:30 तक ले सकते हैं। देर रात खाना खाने से पाचन क्रिया प्रभावित होती है क्योंकि खाने को पचने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता। सोने के 3 घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए ताकि पाचन के लिए आवश्यक समय मिल जाए। इसका अर्थ यह नहीं है कि आप भोजन रात 11:00 बजे करें और 2:00 बजे सोएं। सोने का समय भी 11:00-11:30 से ऊपर नहीं होना चाहिए।
1. सात्विक समय : खाना सही समय पर खाएं। सद्गुरु जग्गी वासुदेव के अनुसार, हमें दिन में दो बार या अधिकतम तीन बार भोजन करना चाहिए। साथ ही, दो भोजनों के बीच में बार-बार कुछ भी नहीं खाते रहना चाहिए। खाने का सही समय सुबह 11:00 बजे के आसपास और शाम को 7:00-7:30 है। लेकिन यदि व्यवसायिक कारणों से आप सुबह 11:00 बजे खाना नहीं खा पाते, तो हल्का नाश्ता ले सकते हैं, और फिर दोपहर का भोजन 1:00 बजे के आसपास। उसी क्रम में रात्रि भोजन 8:00-8:30 तक ले सकते हैं। देर रात खाना खाने से पाचन क्रिया प्रभावित होती है क्योंकि खाने को पचने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता। सोने के 3 घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए ताकि पाचन के लिए आवश्यक समय मिल जाए। इसका अर्थ यह नहीं है कि आप भोजन रात 11:00 बजे करें और 2:00 बजे सोएं। सोने का समय भी 11:00-11:30 से ऊपर नहीं होना चाहिए।
2. सात्विक मनोदशा : भोजन करते समय यदि आप अशांत हैं, क्रोधित हैं, या अन्य किसी नकारात्मक मनोदशा में हैं तो इसका आपके भोजन पर बड़ा हानिकारक असर होता है। और अमृत जैसा सात्विक आहार भी विष में परिवर्तित हो जाता है। इसीलिए इस बात का ध्यान रखना है कि खाते समय आप शांत हों, प्रेमपूर्ण हों, और पूरा ध्यान भोजन करने में हो। भोजन करते समय केवल भोजन करना चाहिए। ऐसा करने से आप न केवल भोजन का सही स्वाद ले पाते हैं, बल्कि उसे ठीक ढंग से चबाते भी हैं जो कि सुगम पाचन के लिए बहुत ज़रूरी है। साथ ही सजग होकर खाने से आप अपने लिए भोजन की सही मात्रा का निर्धारण भी कर पाते हैं। आमतौर पर बेहोशी में भोजन करते हुए हम नहीं जान पाते कि हमें कितना भोजन चाहिए। बस अंदर खाद्य पदार्थ डालते जाते हैं। और तब अचानक हमें महसूस होता है कि आज हमने अति भोजन कर लिया। लेकिन फिर उस भोजन को बाहर निकालने का कोई और उपाय नहीं होता सिवाय इंतज़ार करने के।
2. सात्विक मनोदशा : भोजन करते समय यदि आप अशांत हैं, क्रोधित हैं, या अन्य किसी नकारात्मक मनोदशा में हैं तो इसका आपके भोजन पर बड़ा हानिकारक असर होता है। और अमृत जैसा सात्विक आहार भी विष में परिवर्तित हो जाता है। इसीलिए इस बात का ध्यान रखना है कि खाते समय आप शांत हों, प्रेमपूर्ण हों, और पूरा ध्यान भोजन करने में हो। भोजन करते समय केवल भोजन करना चाहिए। ऐसा करने से आप न केवल भोजन का सही स्वाद ले पाते हैं, बल्कि उसे ठीक ढंग से चबाते भी हैं जो कि सुगम पाचन के लिए बहुत ज़रूरी है। साथ ही सजग होकर खाने से आप अपने लिए भोजन की सही मात्रा का निर्धारण भी कर पाते हैं। आमतौर पर बेहोशी में भोजन करते हुए हम नहीं जान पाते कि हमें कितना भोजन चाहिए। बस अंदर खाद्य पदार्थ डालते जाते हैं। और तब अचानक हमें महसूस होता है कि आज हमने अति भोजन कर लिया। लेकिन फिर उस भोजन को बाहर निकालने का कोई और उपाय नहीं होता सिवाय इंतज़ार करने के।
3. सात्विक वातावरण : भोजन करने के स्थान को अनुकूल बनाना बहुत ज़रूरी है। यदि हमारे आसपास शोर-शराबा, दौड़-भाग, भीड़-भाड़ हो तब भी सात्विक आहार की मौलिक प्रकृति पर कुप्रभाव पड़ता है। इसीलिए भोजन के स्थान के आसपास वातावरण शांत, शीतल, और आनंदपूर्ण होना चाहिए।
यदि आप इन तीन बातों का ध्यान रखें, तो आपके सात्विक आहार की गुणवत्ता कई गुनी बढ़ जाएगी, एवं आप सात्विक आहार का सही अर्थों में लाभ ले पाएंगे।
3. सात्विक वातावरण : भोजन करने के स्थान को अनुकूल बनाना बहुत ज़रूरी है। यदि हमारे आसपास शोर-शराबा, दौड़-भाग, भीड़-भाड़ हो तब भी सात्विक आहार की मौलिक प्रकृति पर कुप्रभाव पड़ता है। इसीलिए भोजन के स्थान के आसपास वातावरण शांत, शीतल, और आनंदपूर्ण होना चाहिए।
यदि आप इन तीन बातों का ध्यान रखें, तो आपके सात्विक आहार की गुणवत्ता कई गुनी बढ़ जाएगी, एवं आप सात्विक आहार का सही अर्थों में लाभ ले पाएंगे।